हनुमानगढ़ी के इतिहास में जुड़ा नया अध्याय-300 साल की परंपरा टूटी

आचार्य स्कंददास
अयोध्या धाम । अक्षय तृतीया पर एक अद्भुत और ऐतिहासिक क्षण सामने आया। हनुमानगढ़ी के महंत प्रेमदास ने तीन सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए पहली बार मंदिर की सीमा से बाहर कदम रखा और भव्य रथयात्रा के माध्यम से रामलला के दर्शन हेतु निकले। यह घटना धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। बता दे कि बुधवार सुबह ठीक सात बजे, अयोध्या की पाचन धरती एक विशेष दृश्य की साक्षी बनी।हाथी, घोड़े, ऊंट और हजारों भक्तों की मौजूदगी में हनुमानगढ़ी के महंत प्रेमदास रथ पर सवार होकर मंदिर से बाहर निकले। यह यात्रा हनुमानगढ़ी से शुरू होकर सरयू तट तक गई, जहाँ महंत ने पवित्र स्नान किया। इसके पश्चात वह राम जन्मभूमि स्थित राम मंदिर पहुंचे, जहाँ उन्होंने भगवान रामलला को छप्पन भोग अर्पित किए। यह यात्रा लगभग एक किलोमीटर लंबी गद्दी नशीन महंत प्रेमदास पहली बार रामलला के दर्शन को निकले। लेकिन धार्मिक महत्ता और ऐतिहासिक संदर्भ में इसका महत्व अनंत है। महंत प्रेमदास पिछले 30 वर्षों से हनुमानगढ़ी के भीतर ही निवासरत थे और परंपरागत रूप से मुख्य पुजारी को मंदिर से बाहर न जाने का नियम था। इस परंपरा की जड़े 18वीं शताब्दी से जुड़ी हैं.जब हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना हुई थी। गद्दी नशीन महंत को अयोध्या का रक्षक माना जाता है और उनका मंदिर में रहना आवश्यक होता है। यहां तक कि इतिहास में उन्हें अदालत में पेश होने से भी छूट मिली हुई थी। मान्यता है कि भगवान राम ने हनुमान जी को अयोध्या का राज्य सौंपा था और तब से ही महंत को हनुमान जी का प्रतिनिधि माना जाता है। हनुमानगढ़ी का संविधान जो करीब 300 वर्ष पुराना है-इस नियम को विधिवत लिखित रूप में मान्यता देता है। 1855 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह द्वारा इस मंदिर को भूमि दान की गई थी, जो इस परंपरा की ऐतिहासिक पुष्टि करता है। महंत के सपने में आते रहे हनुमान जी महाराज महंत प्रेमदास ने बताया कि उन्हें बीते कुछ महीनों से बार-बार भगवान हनुमान के दर्शन स्वप्न में हो रहे थे। स्वप्न में उन्हें राम मंदिर जाकर रामलला के दर्शन करने का आदेश मिला। इसे दिव्य सकेत मानकर उन्होंने निर्वाणी अखाड़े की 400 सदस्यीय पंचायत से अनुमति मांगी। 21 अप्रैल को हुई बैठक में सर्वसम्मति से उन्हें अनुमति दे दी गई।महंत का यह निर्णय न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहला अवसर है जब हनुमानगढ़ी की ओर से ऐसा धार्मिक जुड़ाव सार्वजनिक रूप से हुआ है। राममंदिर आंदोलन से दूर रहा हनुमान गढ़ी ज्ञात हो कि हनुमानगढ़ी, अपनी धार्मिक तटस्थता और परंपरागत भूमिका के चलते राम मंदिर आंदोलन से हमेशा दूरी बनाए रखी थी। लेकिन आज, रामलला के दर्शन के लिए महत का जाना इस और संकेत करता है कि अयोध्या की आस्था एक नए समन्वय और युग की ओर बढ़ रही है।