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अपने ही बकाया देयकों के लिए 23 साल से भटकना पड़ रहा सेवानिवृत कर्मचारी को

23 साल से रिटायर्ड स्वास्थ्य पर्यवेक्षक देवराज तिवारी अधिकारियों से पत्राचार कर थक गए , अब हाईकोर्ट की शरण में

बलराम मौर्य/ बालजी हिन्दी दैनिक
तारुन, अयोध्या। बकाया देयकों के भुगतान के लिए स्वास्थ्य कर्मचारी द्वारा स्वास्थ्य विभाग व अन्य आला अधिकारियों के यहां शिकायत के बाद कार्रवाई न होने पर उसने राज्य सूचना आयोग व हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद न्याय की उम्मीद जगी है। मामला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तारुन का है। हैदरगंज थाना क्षेत्र ग्राम पंचायत जाना मजरे लौटन लाल का पुरवा निवासी सेवानिवृत कर्मचारी देवराज तिवारी स्वास्थ्य पर्यवेक्षक ने बताया कि वर्ष 2002 से ही प्रार्थना पत्र संबंधित अधिकारियों को देता रहा है। अभी तक भुगतान नहीं हुआ। वर्ष 2002 से लेकर 2025 तक लगभग एक दर्जन से अधिक प्रार्थना पत्र विभिन्न स्तरों पर महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य लखनऊ से लेकर अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य अयोध्या मंडल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिलाधिकारी, कमिश्नर सहित मुख्यमंत्री दिया। बावजूद इसके भुगतान नहीं किया गया। विवश होकर वर्ष 2023 में राज्य सूचना आयोग में शिकायत की। जिसकी सुनवाई अभी तक जारी है।भुगतान न मिलने की दशा में तिवारी ने 4 मार्च 2025 को उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ में एक याचिका दायर की। जिस पर 11 मार्च 2025 को न्यायालय ने सीएमओ को तिवारी यह पक्ष में एक माह में योग्य बिलों का भुगतान करने का आदेश दिया। एक दिन पहले 7 जून को मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य तारुन को मात्र रिकॉर्ड रूम के अलमारी में बंद पड़े तालों को तोड़कर न्यायिक अधिकारी की निगरानी में स्वास्थ्य विभाग की एक टीम के गठन कर अभिलेखों को रिकवर करने का आदेश देने तक सीमित रह गया है। उपरोक्त विषय पर देयकों के संबंध में राज्य सूचना आयोग व न्यायालय में अवमानना वाद की स्थिति से बचने के लिए अंतिम दिन कार्यवाही करने की इच्छा यह बताती है कि अधिकारियों और कर्मचारी कितने उदासीन हैं, इन्हें न्यायालय का भी भय नहीं रह गया है। उन्होंने बताया कि दो दर्जन कर्मचारियों के कई वर्षों के दिए बोनस व अन्य एरियर का भुगतान यहां तैनात रहे अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया है। सेवानिवृत्ति कर्मचारियों के जीपीएफ अभिलेखों में भुगतान दर्शाया गया है। किंतु बहुत सी धनराशि महालेखाकार कार्यालय प्रयागराज में स्थित कर्मचारियों के जीपीएफ खातों में भेजी नहीं गई है। नियमों को धता बता कर नगद भुगतान कर शासनादेशों के उल्लंघन कर नियमों के विपरीत कई प्रकार के भुगतान किए गए हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1996 से अनवरत कर्मचारियों के साथ भुगतान मे अनियमितता की गई है।

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