ऊंची पकड़ रासुक दार सीएमओ पर कारवाई कब क्या शासन में बैठे अधिकारियों का मुख्यमंत्री से डर नहीं

आखिरकार शासन में बैठे, कौन, जो गोंडा जनपद में सी,एम,ओ के भ्रष्टाचार का दे रहे हैं बढ़ावा
दो साल से शासन में धूल फांक रही है करोड़ों रूपए की वित्तीय अनियमितता की जांच रिपोर्ट
* देवीपाटन मंडल के तत्कालीन आयुक्त योगेश्वर राम मिश्रा ने जांच कराकर कार्रवाई के लिए शासन को भेजी थी रिपोर्ट
अनिल कुमार द्विवेदी
बी न्यूज दैनिक
गोण्डा। जिले के स्वास्थ्य महकमे की सेहत में सुधार नहीं हो पा रहा है। सपा-बसपा ही नहीं, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति का दावा करने वाली योगी सरकार में भी यह खूब फल-फूल रहा है। रसूख का आलम यह है कि देवीपाटन मंडल के तत्कालीन कमिश्नर द्वारा करोड़ों की अनियमितता की जांच कराकर कार्रवाई के लिए भेजी गई रिपोर्ट का कुछ अता-पता नहीं चल रहा है। जांच के दो साल बाद भी वित्तीय अनियमितता की आरोपी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रश्मि वर्मा के खिलाफ कार्रवाई शून्य है और जांच रिपोर्ट की फाइल शासन में धूल फांक रही है।
बताते चलें कि वर्ष 2023 में अक्टूबर माह में जिले की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रश्मि वर्मा पर दवाओं व उपकरणों की खरीद-फरोख्त में करोड़ों रूपए की वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाते हुए तत्कालीन मंडलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र से शिकायत की गयी थी। प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए आयुक्त ने तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी एम अरून्मौली की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय टीम बनाई थी। जांच टीम द्वारा 01 अप्रैल 2023 से 31 अगस्त 2023 के बीच स्वास्थ्य विभाग में दवाओं व उपकरणों की खरीद-फरोख्त की जांच की गयी थी। रिपोर्ट में सीएमओ डॉ रश्मि वर्मा के साथ ही एसीएमओ एनएचएम भंडार डॉ आदित्य वर्मा, चीफ फार्मासिस्ट व सीएमएसडी इंचार्ज घनश्याम पाण्डेय, जिला अस्पताल के तत्कालीन सीएमएस डॉ पीडी गुप्ता, महिला अस्पताल के तत्कालीन प्रभारी सीएमएस डॉ अमित त्रिपाठी, एनएचएम पटल सहायक मनोज सिंह, जिला लेखा प्रबंधक संदीप मेहरोत्रा व लेखाधिकारी श्रीराम मौर्य को प्रथम दृष्टया वित्तीय अनियमितता का आरोपी पाया गया। टीम ने 16 पन्नों की अपनी रिपोर्ट तत्कालीन मंडलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र को सौंप दी थी। सीडीओ एम अरून्मौली की जांच रिपोर्ट के आधार पर आयुक्त योगेश्वर राम मिश्र ने अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य निदेशालय में प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को भेज दिया था, जो पिछले करीब दो साल से स्वास्थ्य निदेशालय में पड़ी धूल फांक रही है। कार्रवाई न होने पर दिसंबर 2023 में तत्कालीन आयुक्त योगेश्वर राम मिश्र ने शासन को रिमाइंडर भी भेजा था। इसके बाद भी करोड़ों की वित्तीय अनियमितता के मामले में आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इतना सब कुछ होने के बाद भी अपनी पहुंच और राजनीतिक रसूख के चलते सीएमओ डॉ रश्मि वर्मा आज भी अपने पद पर विराजमान हैं और जांच रिपोर्ट स्वास्थ्य निदेशालय, लखनऊ में दबी हुई है। बहरहाल, जिले के स्वास्थ्य महकमे के गलियारों में सीएमओ डॉ रश्मि वर्मा के रसूख की चर्चाएं जोरों से चल रही हैं।
जिसे चाहा उसे दे दी करोड़ों की सौगात
दरअसल, जांच टीम ने स्वास्थ्य विभाग में हुई करोड़ों रुपए की अनियमित दवाओं व उपकरणों की खरीद, बिना टेंडर टुकड़ों में दिए गए प्रक्रिया के आदेश पर गंभीर टिप्पणी करते हुए इसे पूरी तरह से गलत माना था। इसके लिए बाकायदा तत्कालीन सीडीओ एम. अरून्मौली ने जिन-जिन मेडिकल स्टोरों से दवाओं की खरीदारी हुई थी, स्टेशनरी का सामान खरीदा गया था, सर्जिकल दवा, ग्लब्स, कोविड सामग्री, मास्क, टैलीसीट, मॉनिटरिंग फॉरमैट, बुलावा पर्ची, टेबल चेयर कंप्यूटर, प्रिंटर, जन आरोग्य सामग्री, आशा डायरी, मेट्रो पेंटर, रजिस्टर, फ्लैक्स बैनर सहित न जाने कितने सामान खरीदे दिखाए गए थे, उन सबकी गलत ढंग से खरीदारी पर सवाल उठाए थे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सीएमओ डॉ रश्मि वर्मा ने शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं। उन्होंने नियम और कायदा-कानून को दरकिनार कर जिसे चाहा, उसे करोड़ों रुपए की सौगात दे दी। इतना ही नहीं, जांच में जिन उपकरणों की जिले की सभी 16 सीएचसी व 66 पीएचसी में आपूर्ति दिखाई गयी, उन्हें भी जांच रिपोर्ट में दर्शाया गया है।
जांच में मिली थीं ये बड़ी अनियमितताएं
जांच में पाया गया था कि फर्म मेट्रो प्रिंटर से 26.57 लाख रूपए का फ्लैक्स, बैनर व प्रिंटिंग का काम लिया गया। चहेते को लाभ दिलाने के लिए 20 फर्मों में से 10 को बिना विशेषज्ञ की राय लिए अयोग्य बताकर हटा दिया गया था। जिन तीन फर्मों के बीच टेंडर कराया गया, वो सभी एक ही व्यक्ति से संबंधित थीं। मेसर्स जेएस फार्मा से 31.60 लाख, 94.39 लाख व 80.55 लाख रूपए रूपए से जांच किट व अन्य उपकरण खरीदे गए। इसी तरह जेएस फार्मा को 49.38 लाख रूपए व 16.12 लाख रूपए का काम दिया गया। इसमें क्रय व भुगतान संदेहपूर्ण मिला। इसी प्रकार मेट्रो प्रिंटर्स से 6.94 लाख व 27.45 लाख रूपए का काम लिया गया। इसमें बिल भुगतान व सामग्री अलग-अलग पाई गई। इसी तरह जेएस फार्मा से 56.58 लाख की खरीद व मेसर्स विनीत इंटरप्राइजेज से 1.64 लाख व 4.21 लाख की खरीद-फरोख्त को जांच में त्रुटिपूर्ण बताया गया।